कंप्यूटर से जुड़े तथ्य कंप्यूटर विकास के चरण

कंप्यूटर से जुड़े तथ्य              
कंप्यूटर का आविष्कार आज से दो हजार वर्ष पूर्व हुआ था। तब कंप्यूटर की शुरुआत अबेकस के रूप में हुई थी। अबेकस लकड़ी का बना एक रैक होता है जिसमें दो तार लगे होते हैं। दोनों तार एक-दूसरे के समानांतर में स्थित होते हैं। तार के ऊपर मणिका आकार का वस्तु लगा होता था। उस मणिका को घुमाकर गणित के किसी आसान प्रश्नों का हल प्राप्त किया जाता था। दूसरे, वहाँ पर एस्ट्रोबेल लगा होता था जिसका उपयोग उसे आपस में जोड़ने में किया जाता था।
पहले डिजिटल कंप्यूटर का आविष्कार ब्लेज पास्कल द्वारा 1642 ई. में किया गया। इसमें नंबर लगा होता था जिसे डायल करना पड़ता था। लेकिन यह केवल जोड़ने का ही कार्य कर सकता था। तथापि 1671 ई. में एक कंप्यूटर का आविष्कार किया गया जो अंततः 1694 में जाकर तैयार हुआ। इस आविष्कार का श्रेय गॉटफ्राइड वीलहेम वॉन लीबनिज (Gottfried Wilhelm von Leibniz) को जाता है। लीबनिज ने योज्य अंक की शुरुआत के लिए स्टेप्ड गीयर यंत्रावली का आविष्कार किया जिसका आज भी उपयोग होता है।

कंप्यूटर विकास के चरण

कंप्यूटर के जनक
चार्ल्स बैबेज एक अँगरेज गणितज्ञ और अनुसंधानकर्ता थे, जो 1800 ई. में ही यह मानते थे कि वह कंप्यूटर की तरह मशीन बना सकते हैं। 1827 में उन्होंने ब्रिटिश सरकार को उनकी परियोजना में धन लगाने के लिए रजामंद करने के बाद सालों तक अपने डिफरेंस इंजन पर काम करते रहे। यह एक ऐसा यंत्र था, जो तालिका (टेबल) बनाने के काम में इस्तेमाल होता था। हालांकि उन्होंने इसके कुछ हिस्सों का प्रोटोटाइप (नमूना) भी बना लिया था, लेकिन आखिरकार इस योजना को बीच में ही छोड़ दिया। उन्होंने 1854 ई. में एक विश्लेषणात्मक इंजन (एनालिटिकल इंजन) बनाने का फैसला किया, पर उसको भी बीच में ही छोड़ दिया। हालांकि, यांत्रिक कंप्यूटर बनाने के उनके प्रस्ताव ने आधुनिक कंप्यूटर की खोज को एक विचार तो दिया ही। अपनी इसी सफलता की वजह से उनको कंप्यूटर का जनक भी कहा जाता है
कंप्यूटर विकास के इतिहास को अक्सर ही कंप्यूटरीकरण के विविध यंत्रों की अलग पीढ़ियों से जोड़ कर देखा जाता है। कंप्यूटर की हरेक पीढ़ी एक अहम् तकनीकी विकास को दिखाता है जिसने आधारभूत तौर पर कंप्यूटर के काम करने के तरीके को बदल दिया। इससे और भी छोटे, सस्ते, अधिक शक्तिशाली और अधिक प्रभावी व भरोसेमंद उपकरण लगातार बनने लगे। यहाँ कंप्यूटर के विकास के विभिन्न चरणों की जानकारी दी जा रही है जिसके कारण आज मौजूदा उपकरण बने और जिनका हम इस्तेमाल कर रहे हैं।
(क) प्रथम पीढ़ी (1940-1956) : वैक्यूम ट्यूब्स
कंप्यूटर के पहले दौर में स्मृति/मेमोरी के लिए चुंबकीय (मैग्नेटिक) और परिपथीय (सर्क्यूटरी) ड्रम का इस्तेमाल करते थे और इसी वजह से ये काफी बड़े होते थे और पूरे कमरे की जगह लेते थे। यह इस्तेमाल में काफी महंगे होते थे और काफी
अधिक बिजली ग्रहण करते, बेहद गर्मी पैदा करते और कई बार इसी वजह से खराब भी हो जाते थे।पहली पीढ़ी के कंप्यूटर, परिचालन के लिए मुख्यतः मशीनी भाषा पर निर्भर होते थे और एक समय में एक ही समस्या का हल कर सकते थे। इनका इनपुट पंच्ड कार्डों और पेपर टेप पर आधारित था जबकि आउटपुट केवल प्रिंटआउट पर ही दिखते थे।
यूनीवैक (यूनिवर्सल ऑटोमैटिक कंप्यूटर) और इ.एन.आई.ए.सी (इलेक्ट्रॉनिक न्यूमैरिकल इंटीग्रेटर एंड कंप्यूटर) पहली पीढ़ी के कंप्यूटर उपकरणों के उदाहरण हैं।  यूनीवैक पहला व्यावसायिक कंप्यूटर था जिसे 1951 में संयुक्त राज्य अमेरिका के जनगणना ब्यूरो को दिया गया था।
वैक्यूम ट्यूब सर्किट
(ख) दूसरी पीढ़ी (1956-1963) : ट्रांजिस्टर
वैक्यूम ट्यूब के स्थान पर ट्रांजिस्टर का प्रयोग शुरू हुआ और इसी के साथ दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर अस्तित्व में आये। ट्रांजिस्टर की खोज 1947 में ही हो गई थी पर इसका व्यापक इस्तेमाल 1950 के दशक के अंतिम दौर में ही हो सका था। यह वैक्यूम ट्यूब से काफी परिष्कृत था जिसने कंप्यूटर को
छोटा, तेज, सस्ता, ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल और पहली पीढ़ी के कंप्यूटर के मुकाबले अधिक भरोसेमंद बनाया। हालांकि ट्रांजिस्टर भी काफी गर्मी पैदा करते थे जिससे कंप्यूटर को नुकसान पहुँचता था, पर यह वैक्यूम ट्यूब के मुकाबले काफी बेहतर था। दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर भी इनपुट के लिए पंच कार्ड और आउटपुट के लिए प्रिंटआउट पर निर्भर थे।
दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर क्रिप्टिक बाइनरी मशीनी भाषा के मुकाबले सिंबॉलिक या एसेंबली लैंग्वेज का इस्तेमाल करते थे।  इससे प्रोग्रामर को वर्ड्स में खास निर्देश देने में सुविधा होती थी। ऊँचे स्तर के प्रोग्रामिंग भाषा भी इसी समय खोजे गये, जैसे कोबोल (COBOL) और फॉरट्रेन (FORTRAN) की भी खोज हुई। ये वैसे पहले कंप्यूटर भी थे, जो अपनी स्मृति (मेमोरी) में अपने निर्देशों को संग्रहित रखते थे, जिससे मैग्नेटिक ड्रम्स की जगह मैग्नेटिक कोर तकनीक का इस्तेमाल शुरू हुआ। इस पीढ़ी के पहले कंप्यूटर परमाणु ऊर्जा उद्योग के लिए विकसित किये गये थे।
ट्रांजिस्टर आधारित सर्किट
तीसरी पीढ़ी (1964-1971) : एकीकृत परिपथ
तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटरों की सबसे बड़ी विशेषता एकीकृत परिपथ के इस्तेमाल की थी।  ट्रांजिस्टर को छोटा कर सिलिकॉन चिप पर लगाया गया, जिसे सेमी कंडक्टर कहते थे।  इसने असाधारण रूप से कंप्यूटर की क्षमता और गति में बढ़ोत्तरी कर दी।  
पंच कार्ड और प्रिंटआउट की जगह उपयोगकर्ताओं को तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर में मॉनिटर और की-बोर्ड से परिचित कराया गया। साथ ही, एक ऑपरेटिंग सिस्टम से भी वह मुखातिब हुए। इससे एक ही समय एक केन्द्रीय कार्यक्रम (सेंट्रल प्रोग्राम) के साथ कई सारे अलग-अलग अनुप्रयोग (एप्लिकेशन) लायक उपकरण बन सके। पहली बार कंप्यूटर एक बड़े वर्ग तक पहुँच सका क्योंकि वह पहले के मुकाबले अधिक छोटे और सस्ते थे।
इंटीग्रेटेड सर्किट
चौथी पीढ़ी (1971 से अब तक) : माइक्रो प्रॉसेसर
माइक्रो प्रॉसेसर के साथ ही चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर अस्तित्व में आये, जिसमें हजारों एकीकृत परिपथों (इंटीग्रेटेड सर्किट) को एक सिलिकॉन चिप में बनाया गया। जहाँ पहली पीढ़ी के कंप्यूटर पूरे कमरे की जगह लेते थे, अब कंप्यूटर हथेली में समा सकते थे। 1971 ई. में खोजे गये इंटेल 4004 चिप में कंप्यूटर के सभी जरूरी घटक (कंपोनेन्ट्स) थे- सेंट्रल प्रॉसेसिंग यूनिट और मेमोरी से लेकर इनपुट, आउटपुट कंट्रोल तक-सिर्फ एक चिप पर।  
1981 में आई.बी.एम अपना पहला कंप्यूटर लेकर आई। यह घरेलू उपयोग करने वालों के लिए था। 1984 में एप्पल ने मैकिनटोस बनाया। माइक्रो प्रॉसेसर, डेस्कटॉप कंप्यूटर से आगे बढ़कर जीवन के कई क्षेत्रों में आया और दिन-प्रतिदिन के उत्पादों में माइक्रो प्रॉसेसर का इस्तेमाल होने लगा।  
ये छोटे कंप्यूटर काफी ताकतवर होते हैं। वे आज एक-साथ नेटवर्क को जोड़ सकते हैं जो अंततः इंटरनेट के विकास में काम आए। चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर ने माउस, जीयूआई और हाथ से पकड़े जाने वाले उपकरणों का भी विकास किया।  
पाँचवी पीढ़ी (वर्तमान और आगे: कृत्रिम बुद्धि
पाँचवी पीढ़ी के कंप्यूटर उपकरण जो कृत्रिम बुद्धि पर आधारित हैं, अब भी विकास की प्रक्रिया में है, हालांकि कुछ उपकरण जैसे आवाज की पहचान (वॉयस रिकॉगनिशन) आज इस्तेमाल किये जा रहे हैं।  सुपर कंडक्टर और पैरेलल प्रॉसेसिंग, कृत्रिम बुद्धि को वास्तविकता में बदलने में सहायता कर रहे हैं।  परिमाण संगणन (क्वांटम कंप्यूटेशन) और मॉलेक्यूलर व नैनोटेक्नॉलॉजी आनेवाले वर्षों में कंप्यूटर का चेहरा पूरी तरह बदल देगा। पाँचवी पीढ़ी के कंप्यूटर का लक्ष्य ऐसे उपकरणों का विकास करना है जो प्राकृतिक लैंग्वेज इनपुट से संचालित हो सकते हैं और वह स्व-संगठन (सेल्फ-ऑर्गैनाइजेशन) और सीखने के लायक है।

कंप्यूटर के प्रकार

(क) पर्सनल कंप्यूटर (पीसी)
मेनफ्रेमः बड़े हार्ड ड्राइव, बहुत अधिक स्मृति क्षमता (रैम), मल्टीपल सीपीयू के साथ चलने वाले कंप्यूटर विभिन्न प्रकार की संगणना करते हैं जो प्रॉसेसर की गति (स्पीड) और मेमोरी के इस्तेमाल पर निर्भर करता है।
सुपर कंप्यूटरः यह कंप्यूटर काफी सारे प्रॉसेसर, एएलयू, मेमोरी (रैम) वगैरह से लैस होता है। आमतौर पर इसका उपयोग वैज्ञानिक शोध-कार्य में किया जाता है। इसकी क्षमता 14,000 माइक्रो कंप्यूटर की होती है।
लैपटॉपः यह पर्सनल कंप्यूटर के समान कार्य करने वाला लेकिन हाथ में उठाकर साथ ले जाने योग्य सुसंबद्ध (कांपैक्ट) कंप्यूटर है। यह नोटबुक के आकार का होता है।
माइक्रो कंप्यूटरः यह बहुत छोटा कंप्यूटर होता है, जो कैमरा में इस्तेमाल किया जाता है।  माइक्रो कंप्यूटर ऐसा कंप्यूटर है जिसके सेंट्रल प्रॉसेसिंग यूनिट में माइक्रो प्रॉसेसर होता है।  इसकी दूसरी विशेषता है यह माइक्रो फ्रेम और मिनी कंप्यूटर की तुलना में काफी कम जगह लेता है।
पर्सनल डिजिटल असिस्टैंट या पामटॉप (पीडीए)
यह हथेली  में रखे जाने योग्य कंप्यूटर है, हालांकि पिछले कई सालों से इसमें लगातार बदलाव हो रहा है। पीडीए को छोटे कंप्यूटर या पामटॉप के नाम से भी जाना जाता है। इसके कई इस्तेमाल हैं-गणना, घड़ी और कैलेंडर के तौर पर इस्तेमाल, इंटरनेट तक पहुँच, ई-मेल भेजना या प्राप्त करना, वीडियो रिकॉर्डिंग, टाइपराइटिंग व वर्ड प्रॉसेसिंग, एड्रेस बुक के तौर पर इस्तेमाल, स्प्रेडशीट बनाना व उस पर लिखना, बार कोड की स्कैनिंग, रेडियो या स्टीरियो के तौर पर इस्तेमाल, कंप्यूटर गेम्स, सर्वे रिस्पांस की रिकॉर्डिंग और ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) वगैरह। नये पामटॉप में कलर स्क्रीन और ऑडियो क्षमता, मोबाइल फोन के तौर पर इस्तेमाल (स्मार्ट फोन), वेब ब्राउजर या पोर्टेबल मीडिया प्लेयर भी आता है। कई पीडीए इंटरनेट तक, वाई-फाई के इस्तेमाल से इंट्रानेट या एक्स्ट्रानेट तक या वायरलेस वाइड-एरिया नेटवर्क तक भी पहुँच सकते हैं। बहुत सारे पामटॉप में टच स्क्रीन तकनीक का भी इस्तेमाल होता है।
एनालॉगः पुराने, अव्यावहारिक कंप्यूटर। ये भौतिक मात्राओं की गणना करते हैं, जैसे एमीटर, वोल्टेज मीटर वगैरह। एनालॉग कंप्यूटर एक ऐसा उपकरण है जो लगातार भौतिक परिवर्तनों का इस्तेमाल कर संगणना करते हैं जो कि वास्तविक वस्तुओं के एनालॉग होते हैं। एनालॉग कंप्यूटर उदाहरण के लिए गीयर्स के लगातार घूर्णन (कंटीन्यूअस रोटेशन) का इस्तेमाल कर सकते हैं या मशीनी या विद्युत-मशीनी (इलेक्ट्रो मेकैनिकल) हिस्सों के कोणीय गति (एंग्युलर मूवमेन्ट) की सहायता से संगणन (कंप्यूटेशन) करता है।
डिजिटलः ये प्रॉसेसिंग के लिए बायनरी अंकों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे पर्सनल कंप्यूटर।
कंप्यूटर जो अंकों (डिजिट) के संदर्भ में आँकड़े (डाटा) संग्रहित करते हैं और खंडित चरणों (डिस्क्रिट स्टेप्स) में एक चरण से दूसरे चरण में प्रॉसेसिंग करता है। किसी डिजिटल कंप्यूटर की अवस्था खास तौर पर बायनरी डिजिट (द्विआधारी अंकों) के इस्तेमाल से होता है जो किसी स्टोरेज मीडियम, ऑन-ऑफ स्विच या रिले के मैग्नेटिक मार्कर की उपस्थिति या अनुपस्थिति का भी रूप ले सकता है। डिजिटल कंप्यूटर में अक्षर, अंक और पूरा आलेख भी डिजिटल तरीके से दिखता है। एनालॉग कंप्यूटरों के उलट यह डिजिटल कंप्यूटर किसी भी अवस्था को दिखाने के लिए भारी संख्या में अंकों की सेवा लेकर बारंबारता को बढ़ा सकता है, वह भी क्रमहीन तरीके से छोटे चरणों में।
हाइब्रिडः ये कंप्यूटर डिजिटल और एनालॉग कंप्यूटर की बेहतरीन खूबियों को समाहित रखते हैं। ये वैसे कंप्यूटर है जिनमें दोनों ही तरह की (डिजिटल और एनालॉग) कंप्यूटरों की विशेषताएँ होती है। इसका डिजिटल हिस्सा आमतौर पर कंट्रोलर की भूमिका निभाता है और तार्किक संक्रियाएँ (डिजिटल ऑपरेशंस) मुहैया कराता है, जबकि इसका एनालॉग वाला हिस्सा सामान्यतः विभेदी गणनाएँ करता है।












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